एक दरख़्त की दहशत

मैं कुल्हाड़े से नहीं डरा

न कभी आरे से

मैं तो ख़ुद कुल्हाड़े के फल और आरे के दस्ते से जुड़ा हूँ

मैं चाहता हूँ

कोई आँख मेरे बदन में उतरे

मेरे दिल तक पहुँचे

कोई मोहतात आरी

कोई मश्शाक़ हाथ मुझे तराश कर

मल्लाहों के लिए कश्तियाँ

और मकतब के बच्चों के लिए तख़्तियाँ बनाए

इस से पहले

कि मेरी जड़ें बूढ़ी दाढ़ की तरह हिलने लगें

या मेरी ख़ुश्क टहनियाँ आपस में रगड़ खा कर जंगल की आग बन जाएँ

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In Hindi By Famous Poet Saeeduddin. is written by Saeeduddin. Complete Poem in Hindi by Saeeduddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.