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दरबारी मुग़न्नी - सईदुद्दीन कविता - Darsaal

दरबारी मुग़न्नी

मैं एक धुत्कारा हुआ

दरबारी मुग़न्नी हूँ

दरबार से धुत्कार दिए जाने से पहले

मेरे हल्क़ में सिन्दूर की एक पूरी शीशी

उलट दी गई है

अब मेरा गला

महज़ ग़िज़ा की नाली बन कर रह गया है

मुझे अपने गले के सोज़-ओ-साज़ से महरूम किए जाने से ज़ियादा अफ़्सोस

उस बात का है

कि मैं अपने मेदे में उतरी हुई अशरफ़ियाँ

मरवारीद और नीलम

शाही महल में थूक कर नहीं आया

उन सब ने मेरे मेदे में अपने लिए

कोई गुंजाइश सुर अलापना चाहूँ

तो ये अशरफ़ियाँ

मरवारीद और नीलम

मेरे मेदे में दहकने लगते हैं

जिस तश्तरी में मुझे

ये अशरफ़ियाँ मरवारीद और नीलम पेश किए जाते थे

अब उस तश्तरी में

महल के ख़्वाजा-सरा के पालतू कुत्ते को

रातिब दिया जाता है

जिस के मेदे में कोई चीज़

ज़ियादा देर तक नहीं टिकती

कभी कभी ये कुत्ता

ख़्वाजा-सरा के पैर चाटते चाटते

बादशाह पर भूँकने भी लगता है

काश मैं एक बार ही ऐसा कर सकता

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In Hindi By Famous Poet Saeeduddin. is written by Saeeduddin. Complete Poem in Hindi by Saeeduddin. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.