अपनी खोई हुई तौक़ीर नुमायाँ कर दें
अपनी खोई हुई तौक़ीर नुमायाँ कर दें
क्यूँ न तारीकी-ए-महफ़िल को फ़रोज़ाँ कर दें
नूर-ए-सुल्ताना-ओ-रज़िया की हमिय्यत की क़सम
गुम्बद-ए-चर्ख़ को इक बार तो लर्ज़ां कर दें
फ़ातिमा-ज़हरा के दिल-दोज़ तहम्मुल की क़सम
अज़्मत-ए-रफ़्ता से दुनिया में चराग़ाँ कर दें
जब्र और ज़ुल्म की बुनियाद को ढह कर बहनो
आओ अब हिम्मत-ए-मर्दाना को हैराँ कर दें
तफ़रक़े सारे ये आपस के मिटा डालें हम
आओ अब जुरअत-ए-निसवाँ को नुमायाँ कर दें
हिन्द वीरान हुआ हम को ही 'मख़फ़ी' रख कर
उठो इस उजड़े गुलिस्ताँ में बहाराँ कर दें
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