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डूबते जाते थे तारे बादबाँ रौशन हुआ - सईदुल ज़फर चुग़ताई कविता - Darsaal

डूबते जाते थे तारे बादबाँ रौशन हुआ

डूबते जाते थे तारे बादबाँ रौशन हुआ

पौ फटी ख़ुर्शीद उभरा आसमाँ रौशन हुआ

रात कहती थी दियों की टिमटिमाहट कब तलक

तीरगी सोई ज़मीर-ए-कुन-फ़काँ रौशन हुआ

बे-कसी के दर्द ने लौ दी जल उट्ठा इक चराग़

रफ़्ता रफ़्ता उस से फिर सारा जहाँ रौशन हुआ

जब सहारा आख़िरी टूटा तो हिम्मत जाग उठी

बुझ गए शम्स-ओ-क़मर अपना मकाँ रौशन हुआ

बीसियों झूटे ख़ुदा थे एक हारून-अल-रशीद

आँधियाँ उठीं चराग़-ए-पासबाँ रौशन हुआ

राख में अब तक सुलगती हैं दबी चिंगारियाँ

बाग़ सारा जल बुझा लेकिन कहाँ रौशन हुआ

चढ़ रही थी फ़ित्ना-ए-इमरोज़ की देबी पे भेंट

शाहिद-ए-फ़र्दा का चेहरा ना-गहाँ रौशन हुआ

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In Hindi By Famous Poet Saeed-ul-Zafar Chughtai. is written by Saeed-ul-Zafar Chughtai. Complete Poem in Hindi by Saeed-ul-Zafar Chughtai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.