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अजब मौजूदगी है जो कमी पर मुश्तमिल है - सईद शरीक़ कविता - Darsaal

अजब मौजूदगी है जो कमी पर मुश्तमिल है

अजब मौजूदगी है जो कमी पर मुश्तमिल है

किसी का शोर मेरी ख़ामुशी पर मुश्तमिल है

अँधेरी सुब्ह वीराँ रात या शाम-ए-फ़सुर्दा

मिरा हर लम्हा उन में से किसी पर मुश्तमिल है

नहीं मिल पाती कोई भी हँसी मेरी हँसी में

ये वाहिद रंज है जो रंज ही पर मुश्तमिल है

चमक उठता है इक भूला हुआ चेहरा अचानक

न जाने तीरगी किस रौशनी पर मुश्तमिल है

सराब-ए-ख़्वाब देखूँ या उड़ाऊँ ख़ाक अपनी

ये सहरा इक मकाँ और इक गली पर मुश्तमिल है

वरक़ खुलते ही कितनी तितलियाँ उड़ती हैं 'शारिक़'

अगरचे बाग़ इक सूखी कली पर मुश्तमिल है

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In Hindi By Famous Poet Saeed Shariq. is written by Saeed Shariq. Complete Poem in Hindi by Saeed Shariq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.