तुम से मिलने का बहाना तक नहीं
और बिछड़ जाने के हीले हैं बहुत
Mohsin Naqvi
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(630) Peoples Rate This
मैं भी अपनी ज़ात में आबाद हूँ
अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को
उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी
तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो
हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है
अंजाम
सोने के दिल मिट्टी के घर पीछे छोड़ आए हैं
इंतिज़ार
नज़र में रंग समाए हुए उसी के हैं
रोज़ हवा में उड़ने की फ़रमाइश है
शाम के आसार गीले हैं बहुत