तुम अपने दरिया का रोना रोने आ जाते हो
हम तो अपने सात समुंदर पीछे छोड़ आए हैं
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तआक़ुब
उज़्र हवा ने क्या रक्खा है
सोने के दिल मिट्टी के घर पीछे छोड़ आए हैं
अंजाम
रोज़ हवा में उड़ने की फ़रमाइश है
हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है
तुम से मिलने का बहाना तक नहीं
शाम के आसार गीले हैं बहुत
अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को
इंतिज़ार
उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी