फिर मिरे तआक़ुब में
इक उदास सा चेहरा
ज़ख़्म ज़ख़्म यादों के जब्र की रिदा ओढ़े
हिज्र की तमाज़त में
वस्ल की मसाफ़त में
बे-समर मोहब्बत की बे-निशान गलियों में
नंगे पाँव फिरता है
Habib Jalib
Allama Iqbal
Parveen Shakir
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Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
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मैं भी अपनी ज़ात में आबाद हूँ
सोने के दिल मिट्टी के घर पीछे छोड़ आए हैं
शाम के आसार गीले हैं बहुत
तआक़ुब
इंतिज़ार
हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है
उज़्र हवा ने क्या रक्खा है
उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी
अपनी आवाज़ सुनाई नहीं देती मुझ को
तुम से मिलने का बहाना तक नहीं
रोज़ हवा में उड़ने की फ़रमाइश है
अंजाम