और तुम नहीं आते
चाँद डूब जाता है
उम्र बीत जाती है
इंतिज़ार की बाज़ी
रात जीत जाती है
जब्र का कड़ा लम्हा
आस का बुझा तारा
शाम-ए-हिज्र का दरिया
मुझ में डूब जाता है
Gulzar
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Parveen Shakir
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तआक़ुब
मैं भी अपनी ज़ात में आबाद हूँ
हिज्र तन्हाई के लम्हों में बहुत बोलता है
इंतिज़ार
शाम के आसार गीले हैं बहुत
नज़र में रंग समाए हुए उसी के हैं
उसी के लुत्फ़ से बस्ती निहाल है सारी
सोने के दिल मिट्टी के घर पीछे छोड़ आए हैं
उज़्र हवा ने क्या रक्खा है
चेहरा चेहरा ग़म है अपने मंज़र में
तुम से मिलने का बहाना तक नहीं
अंजाम