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दोहरी शहरियत - सईद नक़वी कविता - Darsaal

दोहरी शहरियत

क़िस्सा दोहरी शहरियत का

एक हिजरत ने लिक्खा है

जिस्म की हिजरत कहिए उस को

हाथों और पैरों की हिजरत

नाक कान और होंटों की हिजरत

मेरा जिस्म यहाँ है लेकिन

रूह का डेरा और कहीं है

मेरे पुराने हम-साए सब

मेरा चेहरा माँगते हैं

और नए हैं जितने भी वो

जान रहे हैं मुझ को नया

आईने में मुझ को अपना

धुँदला ख़ाका दिखता है

अपनी जेब में रखता हूँ मैं

दोनों ख़तों की इक पहचान

ताकि भूल न जाऊँ मैं ये

अपनी ज़ात और नाम-निशान

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In Hindi By Famous Poet Saeed Naqvi. is written by Saeed Naqvi. Complete Poem in Hindi by Saeed Naqvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.