कुछ लोग इब्तिदा-ए-रिफ़ाक़त से क़ब्ल ही
आइंदा के हर एक गुज़िश्ता तक आ गए
Gulzar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(540) Peoples Rate This
सब करिश्मे तअल्लुक़ात के हैं
जल थल का ख़्वाब था कि किनारे डुबो गया
होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया
जब समाअत तिरी आवाज़ तलक जाती है
इक बर्ग-ए-ख़ुश्क से गुल-ए-ताज़ा तक आ गए
जब बीनाई सावन ने चुराई हो
तज़ादों से इबारत
वही ख़राबा-ए-इम्काँ वही सिफ़ाल-ए-क़दीम
हैरत-ए-पैहम हुए ख़्वाब से मेहमाँ तिरे
हम ज़ात से हम कलामी और फ़िराक़
ज़ात की काल कोठरी से आख़िरी नश्रिया
डूबते सूरज की सरगोशी