जो तिरे ख़ित्ता-ए-बे-आब की ख़्वाहिश न बना
कुलबुलाता है वो दरिया किसी कोहसार में गुम
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अधूरी नस्ल का पूरा सच
जल थल का ख़्वाब था कि किनारे डुबो गया
डूबते सूरज की सरगोशी
होने की इक झलक सी दिखा कर चला गया
सफ़र ला सफ़र
हम भी उसी के साथ गए होश से 'सईद'
कुछ लोग इब्तिदा-ए-रिफ़ाक़त से क़ब्ल ही
उस दिन से पानियों की तरह बह रहे हैं हम
हैरत-ए-पैहम हुए ख़्वाब से मेहमाँ तिरे
जब बीनाई सावन ने चुराई हो
ज़वाल के आईने में ज़िंदा अक्स
शोरिश-ए-वक़्त हुई वक़्त की रफ़्तार में गुम