जल थल का ख़्वाब था कि किनारे डुबो गया
तन्हा कँवल भी झील से बाहर निकल पड़ा
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ख़ुश्क पत्तों में किसी याद का शोला है 'सईद'
मिरा वजूद हवाला तिरा हुआ आख़िर
अधूरी नस्ल का पूरा सच
बद-गुमान
ज़वाल के आईने में ज़िंदा अक्स
ज़ात की काल कोठरी से आख़िरी नश्रिया
सफ़र ला सफ़र
जब बीनाई सावन ने चुराई हो
खुलता है यूँ हवा का दरीचा समझ लिया
वही ख़राबा-ए-इम्काँ वही सिफ़ाल-ए-क़दीम
हम ज़ात से हम कलामी और फ़िराक़
पत्थर को पूजते थे कि पत्थर पिघल पड़ा