कि जलते बदन की सराए से
कुछ फ़ासले पर
अगर आँख में एक आँसू लिए
तुम ये सोचो
कि दश्त-ए-तमन्ना में जलता हुआ ये पड़ाव
तुम्हारी थकन का पड़ाव है शायद
तो होने की होनी से पूछूँ
बता अब तिरी ख़ाक के नम में ज़र-ख़ेज़ियाँ किस क़दर हैं
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शोरिश-ए-वक़्त हुई वक़्त की रफ़्तार में गुम
जब बीनाई सावन ने चुराई हो
हैरत-ए-पैहम हुए ख़्वाब से मेहमाँ तिरे
ज़ात की काल कोठरी से आख़िरी नश्रिया
खुलता है यूँ हवा का दरीचा समझ लिया
अधूरी नस्ल का पूरा सच
मिरा वजूद हवाला तिरा हुआ आख़िर
चिता में बैठी ख़्वाहिश
वही ख़राबा-ए-इम्काँ वही सिफ़ाल-ए-क़दीम
बद-गुमान
ख़ुश्क पत्तों में किसी याद का शोला है 'सईद'
मआनी की तलाश में मरते लफ़्ज़