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क्यूँ भटकती सहरा में घर भी इक ख़राबा था - सादिया रोशन सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

क्यूँ भटकती सहरा में घर भी इक ख़राबा था

क्यूँ भटकती सहरा में घर भी इक ख़राबा था

बे-निशाँ उदासी का बे-अमाँ अहाता था

जब कभी नज़र आया ख़्वाब में नज़र आया

वो जहाँ पे रहता था कौन सा इलाक़ा था

दाख़ली कशाकश से बा-ख़बर तो हो जाता

ज़ेहन सोचता क्या था दिल का क्या तक़ाज़ा था

उस ने हाल जब पूछा मैं भी मुस्कुरा उट्ठी

इक वही तो लम्हा था जब मुझे इफ़ाक़ा था

उस की चश्म-ए-कम-कम से ज़ख़्म-ए-दिल ने जो पाया

गुल्सिताँ के फूलों में इक नया इज़ाफ़ा था

अन-कही कहानी से इन अधूरी साँसों तक

बस ये नीम-जानी ही मेरा कुल असासा था

मेरी जान जैसी थी और जिस जगह पर थी

ऐसी सारी बातों का शेर ही ख़ुलासा था

'सादिया' की हैरानी आज तक नहीं जाती

कौन था तमाशाई किस का वो तमाशा था

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In Hindi By Famous Poet Sadiya Roshan Siddiqui. is written by Sadiya Roshan Siddiqui. Complete Poem in Hindi by Sadiya Roshan Siddiqui. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.