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वो जिस का रंग सलोना है बादलों की तरह - सादिक़ नसीम कविता - Darsaal

वो जिस का रंग सलोना है बादलों की तरह

वो जिस का रंग सलोना है बादलों की तरह

गिरा था मेरी निगाहों पे बिजलियों की तरह

वो रू-ब-रू हो तो शायद निगाह भी न उठे

जो मेरी आँख में रहता है रतजगों की तरह

चराग़-ए-माह के बुझने पे ये हुआ महसूस

निखर गई मिरी शब तेरे गेसुओं की तरह

वो आँधियाँ हैं कि दिल पर तुम्हारी यादों के

निशाँ भी मिट गए सहरा के रास्तों की तरह

मिरी निगाह का अंदाज़ और है वर्ना

तुम्हारी बज़्म में हूँ मैं भी दूसरों की तरह

क़रीब आए तो गुम-कर्दा-रह दिखाई दिए

जो दूर से नज़र आते थे मंज़िलों की तरह

हर इक नज़र की रसाई नहीं कि देख सके

हुजूम-ए-रंग है ख़ारों में भी गुलों की तरह

न जाने कैसे सफ़र की है आरज़ू दिल में

मैं अपने घर में पड़ा हूँ मुसाफ़िरों की तरह

मैं दश्त-ए-दर्द हूँ यादों की निकहतों का अमीं

हवा थमे तो महकता हूँ गुलशनों की तरह

दमक रहा है जबीन-ए-दवाम पर फ़रहाद

शरार-ए-तेशा फ़रोज़ाँ है मशअ'लों की तरह

उसी की धुन में चट्टानों से सर को टकराया

वो इक ख़याल कि नाज़ुक था आइनों की तरह

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In Hindi By Famous Poet Sadique Naseem. is written by Sadique Naseem. Complete Poem in Hindi by Sadique Naseem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.