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रश्क-ए-महताब जहाँ-ताब था हर क़र्या-ए-जाँ - सादिक़ नसीम कविता - Darsaal

रश्क-ए-महताब जहाँ-ताब था हर क़र्या-ए-जाँ

रश्क-ए-महताब जहाँ-ताब था हर क़र्या-ए-जाँ

जब भी दिल पर चमक उठ्ठे तिरे क़दमों के निशाँ

कौन गुज़रा है महक बन के दयार-ए-दिल से

इतनी गुल-पोश थीं कब शहर-ए-तलब की गलियाँ

तेरी तस्वीर के परतव नहीं मिटने पाते

एक मुद्दत से है दिल कारगह-ए-शीशा-गराँ

आज उस मोड़ पे है शहर-ए-तमन्ना आबाद

तिरा दामन निगह-ए-शौक़ ने चूमा था जहाँ

मैं तिरे दर्द की कुल्फ़त को कहाँ ले आया

मेरे हमराह धड़कता है दिल-ए-कौन-ओ-मकाँ

इतनी मद्धम तो नहीं है मिरी फ़रियाद की लय

इन सलासिल की सदा गूँजेगी ज़िंदाँ ज़िंदाँ

वक़्त आएगा कि दोहराएँगे ख़ुद अहल-ए-जफ़ा

मैं ने जो गीत सुनाए हैं सर-ए-नोक-ए-सिनाँ

मौज-दर-मौज उभरते हैं तमन्ना के सराब

मेरी तिश्ना-दहनी में हैं समुंदर पिन्हाँ

मैं वो अश्कों का भिकारी हूँ सर-ए-राह-ए-वफ़ा

जिस की ठोकर में रहा मरहला-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ

मैं वो सौदाई-ए-गुल हूँ कि मिरी आँखों ने

सीना-ए-ग़ार में देखी हैं मचलती कलियाँ

ग़म के लम्हों का तअ'य्युन कभी सोचा तो 'नसीम'

एक इक पल से मुझे झाँक रही थीं सदियाँ

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In Hindi By Famous Poet Sadique Naseem. is written by Sadique Naseem. Complete Poem in Hindi by Sadique Naseem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.