इस एहतिमाम से परवाने पेशतर न जले

इस एहतिमाम से परवाने पेशतर न जले

तवाफ़-ए-शम'अ करें और किसी के पर न जले

हवा ही ऐसी चली है हर एक सोचता है

तमाम शहर जले एक मेरा घर न जले

हमें ये दुख कि नुमूद-ए-सहर न देख सके

सहर को हम से शिकायत कि ता-सहर न जले

चराग़-ए-शहर नहीं हम चराग़-ए-सहरा हैं

किसे ख़बर कि जले और किसे ख़बर न जले

तिरी दलील बजा पर ये कैसे माना जाए

शजर को आग लगे और कोई समर न जले

शुऊर-ए-क़ुर्ब की ये भी है इक अजब मंज़िल

हम उस को ग़ैर की महफ़िल में देख कर न जले

ये शाम मर्ग-ए-तमन्ना की शाम है 'सादिक़'

कोई चराग़ किसी ताक़-ए-चश्म पर न जले

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In Hindi By Famous Poet Sadique Naseem. is written by Sadique Naseem. Complete Poem in Hindi by Sadique Naseem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.