सादिक़ैन कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सादिक़ैन
नाम | सादिक़ैन |
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अंग्रेज़ी नाम | Sadiqain |
ज़ाहिर है रुबाई में मिरी दम क्या है
वो जिस को मोहब्बत की रविश कहते हैं
उस हस्ती-ए-मंजली से विर्से में मिला
उन की तो ये इरफ़ानी मनाज़िल में से है
तू है कि एलोरा की कोई मूर्ती है
तन के लिए अहकाम-ए-दक़ीक़ा भी सुनाओ
तख़्लीक़ में मोतकिफ़ ये होना मेरा
तख़्लीक़ के सक़्फ़-ओ-बाम पाटे जाएँ
तहसीन के तोहफ़े मुझे 'साइब' देता
शहबाज़-ए-नबी चर्ख़ पे मंडलाया था
शागिर्द किसी का हूँ न उस्ताद हूँ मैं
शब मेरी थी शाम मेरी दिन था मेरा
साक़ी ने हमें साग़र-ए-जम बख़्शे हैं
सच्चाई पे इक निगाह कर लूँ या-रब
रहमत की कड़ी धूप में लेटूँ मौला
फूलों की मिली बल्ख़ से थाली मुझ को
मेहराब की परछाइयाँ तड़पाती हैं
मैं बुग़्ज़ के अम्बार से क्या लाता हूँ
लिक्खे हैं फ़क़ीर ने जो शाही अल्फ़ाज़
ख़ुद अपने तरीक़े में क़लंदर मैं हूँ
जो नक़्श थे पामाल बनाए मैं ने
इस शाम वो सर में दर्द सहना उस का
हम साँप पकड़ लेते हैं बीनों के बग़ैर
हर हर्फ़ में मह-पारों के क़द बनते हैं
हाँ मफ़्ती-ए-शहर ने फ़तवे भेजे
हाँ जुमला फ़नून-ए-ज़िंदगानी सीखे
हैं क़ाफ़ से ख़त्ताती में पैदा औसाफ़
घर लौह का आबाद किया है ऐ दोस्त
गेसू में वो सुम्बुल के चमन हैं मालूम
गर अपनी सना आम नहीं दुनिया में