उठा ही लाया सभी रास्ते वो काँधों पर
यक़ीन उस पे न करता तो मैं किधर जाता
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फ़र्जाम
बिस्तर बिछा के रात वो कमरे में सो गया
फ़ुर्सत हो तो ये जिस्म भी मिट्टी में दबा दो
एक पुरानी नज़्म
अज़ाबों का शहर
इस घूमती ज़मीन का मेहवर ही तोड़ दो
अपने गले पे चलती छुरी का भी ध्यान रख
उन की याद में बहते आँसू ख़ुश्क अगर हो जाएँगे
और कुछ चारा नहीं
मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ
गरचे सहल नहीं लेकिन तेरे कहने पर लाऊँगा
पलंग पर जो किताब ओ सिनान रख देगा