इस घूमती ज़मीन का मेहवर ही तोड़ दो
बे-कार गर्दिशों पे ख़फ़ा हो रहे हूँ क्यूँ
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दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ
अल्फ़ाज़ की विलादत
एक वसिय्यत
जिस्म पर खुरदुरी सी छाल उगा
अल्फ़ाज़ अल्फ़ाज़ ही हैं
उठा ही लाया सभी रास्ते वो काँधों पर
बिस्तर बिछा के रात वो कमरे में सो गया
मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ
फ़र्जाम
पलंग पर जो किताब ओ सिनान रख देगा
फिर से लहू लहू दर-ओ-दीवार देख ले