गुमाँ न था कि लिफ़ाफ़े में ख़त के बदले वो
लहू-लुहान तड़पती ज़बान रख देगा
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इस घूमती ज़मीन का मेहवर ही तोड़ दो
एक बार फिर
दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ
फ़र्जाम
जिस्म पर खुरदुरी सी छाल उगा
उठा ही लाया सभी रास्ते वो काँधों पर
और कुछ चारा नहीं
बचपन की आँखें
अज़ाबों का शहर
अल्फ़ाज़ अल्फ़ाज़ ही हैं
उन की याद में बहते आँसू ख़ुश्क अगर हो जाएँगे
फिर से लहू लहू दर-ओ-दीवार देख ले