ज़हर-ए-बाद
ईश्वर की हत्या करने के बा'द
एक बे-कोहान लंगड़े ऊँट पर
हर उजाला और अँधेरा फाँदता
सौर-मण्डल के मरुस्थल में
हिरासाँ भागता हूँ
मेरे पीछे आने वाला
चीख़ते चिंघाड़ते बिछड़े गजों का ग़ोल
मुझ को
ज़द से बाहर देख
वापस जा रहा है
और मक़्तूल ईश्वर की
आत्मा की
विश बुझी कुछ सूइयाँ सी
रोम छिद्रों में मुसलसल चुभ रही हैं
और सारे जिस्म में
ख़ौफ़ घुलता जा रहा है
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