सीढ़ियाँ
इक हथेली से दीवार तक
और दीवार से
गीले आकाश तक
देखते देखते
जम से ना'श तक
अब तो उकता गईं
रीढ़ की हड्डियाँ
फिर भी इन सीढ़ियों से
गुज़रती चली जा रही हैं
कई पीढ़ियाँ
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Habib Jalib
Anwar Masood
Gulzar
Javed Akhtar
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(531) Peoples Rate This
काट आगाहियों की फ़स्ल मगर
वो एक चेहरा जो उस से गुरेज़ कर जाता
उन्हें कह दो
अल्फ़ाज़ की विलादत
अपने गले पे चलती छुरी का भी ध्यान रख
इस घूमती ज़मीन का मेहवर ही तोड़ दो
मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ
जिस्म पर खुरदुरी सी छाल उगा
पलंग पर जो किताब ओ सिनान रख देगा
गरचे सहल नहीं लेकिन तेरे कहने पर लाऊँगा
बचपन की आँखें