Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_fbc2c77d3c3acbfffcc3bffaf37491d4, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
अल्फ़ाज़ की विलादत - सादिक़ कविता - Darsaal

अल्फ़ाज़ की विलादत

उस ने

रमते जोगी के आगे

रोटियाँ रख दें

और बहते पानी के सामने

एक दीवार खड़ी कर के

फ़ातेहाना अंदाज़ में कहा:

देखो! मैं ने दोनों को रोक दिया है

और अब तुम्हारी बारी है

ये कह कर उस ने

मेरे तमाम रंग कीचड़ में उलट दिए

मैं ने दौड़ कर क़लम उठाना चाहा

लेकिन उस ने

मेरे हाथों के पहोंचे उतरवा दिए

मैं ज़ोर ज़ोर से चीख़ने लगा

तो उस ने मेरी ज़बान काट कर फेंक दी

और मुझे मज़बूत अंधेरों से जकड़ दिया

सालहा-साल से

घटा-टोप ख़ामोशियाँ बसर करता हुआ

मैं देख रहा हूँ

कीचड़ में बिखरे हुए रंगों के बीच

मेरी कटी हुई ज़बान

दर्द-ए-ज़ेह से तड़प रही है

अल्फ़ाज़ की विलादत का दिन

क़रीब आ गया है

(576) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Sadiq. is written by Sadiq. Complete Poem in Hindi by Sadiq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.