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मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ - सादिक़ कविता - Darsaal

मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ

मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ

हँसते जहान बीच खड़े रो रहे हो क्यूँ

आ जाओ अपने मुख से मुखौटा उतार कर!

बहरूपियों के साथ समय खो रहे हो क्यूँ

क्या इस से होगा रूह के ज़ख़्मों को फ़ाएदा

टूटे दिलों की सुन के सदा रो रहे हो क्यूँ

इस घूमती ज़मीन का मेहवर ही तोड़ दो

बे-कार गर्दिशों पे ख़फ़ा हो रहे हो क्यूँ

ये बूढ़ी नस्ल जब कि तुम्हें मानती नहीं

अपने बदन में इस का लहू ढो रहे हो क्यूँ

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In Hindi By Famous Poet Sadiq. is written by Sadiq. Complete Poem in Hindi by Sadiq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.