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दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ - सादिक़ कविता - Darsaal

दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ

दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ

अंदर आ कर खुल जा सिम-सिम कहना भूल गया हूँ

खोज में तेरी अन-गिन ट्रामें और बसें छानी हैं

कोलतार की सड़कों पर मीलों पैदल घूमा हूँ

बे-पायाँ आकाश के मक़्नातीसी जाल से बच कर

ख़ौफ़-ज़दा सा मैं धरती के सीने से चिमटा हूँ

बरसों पहले बिखर गई थी टूट के जो सहरा में

उस लड़की के जिस्म के बिखरे टुकड़ों को चुनता हूँ

माँ की कोख से क़ब्र का रस्ता दूर नहीं था फिर भी

मैं जीवन की भूल-भुलय्याँ से हो कर गुज़रा हूँ

शायद मेरा दुख सुनने को वा हों गोश किसी के

दिन भर बहरों डोंडों की नगरी में चिल्लाता हूँ

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In Hindi By Famous Poet Sadiq. is written by Sadiq. Complete Poem in Hindi by Sadiq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.