दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ
दरवाज़े को पीट रहा हूँ पैहम चीख़ रहा हूँ
अंदर आ कर खुल जा सिम-सिम कहना भूल गया हूँ
खोज में तेरी अन-गिन ट्रामें और बसें छानी हैं
कोलतार की सड़कों पर मीलों पैदल घूमा हूँ
बे-पायाँ आकाश के मक़्नातीसी जाल से बच कर
ख़ौफ़-ज़दा सा मैं धरती के सीने से चिमटा हूँ
बरसों पहले बिखर गई थी टूट के जो सहरा में
उस लड़की के जिस्म के बिखरे टुकड़ों को चुनता हूँ
माँ की कोख से क़ब्र का रस्ता दूर नहीं था फिर भी
मैं जीवन की भूल-भुलय्याँ से हो कर गुज़रा हूँ
शायद मेरा दुख सुनने को वा हों गोश किसी के
दिन भर बहरों डोंडों की नगरी में चिल्लाता हूँ
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