वक़्त के साथ 'सदा' बदले तअल्लुक़ कितने
तब गले मिलते थे अब हाथ मिलाया न गया
Javed Akhtar
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Wasi Shah
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
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शेर में साथ रवानी के मआनी भी तो भर
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर
हमें न रास ज़माने की महफ़िलें आई
रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से
मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया
लोग कहते हैं दिल लगाना जिसे
मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
उन्हें न तोलिये तहज़ीब के तराज़ू में
ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे