'सदा' के पास है दुनिया का तजरबा वाइज़
तुम्हारी बात में बस फ़ल्सफ़ा किताब का है
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कौन आएगा भूल कर रस्ता
दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला
मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
वक़्त के साथ 'सदा' बदले तअल्लुक़ कितने
मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
तुम सितारों के भरोसे पे न बैठे रहना