रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
दिल नहीं मिलते भी तो हाथ मिलाते जाओ
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Wasi Shah
Rahat Indori
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
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दे गया ख़ूब सज़ा मुझ को कोई कर के मुआफ़
दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
कौन आएगा भूल कर रस्ता
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
'सदा' के पास है दुनिया का तजरबा वाइज़
दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर
अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बाँ थी प्यारे
तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है
दिल के कहने पर चल निकला