मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
उतरता है 'सदा' उन का बुख़ार आहिस्ता आहिस्ता
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चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
दिल न माना मना के देख लिया
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर
अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बाँ थी प्यारे
न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
दिल के कहने पर चल निकला
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
उन्हें न तोलिये तहज़ीब के तराज़ू में