लोग कहते हैं दिल लगाना जिसे
रोग वो भी लगा के देख लिया
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रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
वक़्त के साथ 'सदा' बदले तअल्लुक़ कितने
दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता
दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई
लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला
तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है
न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बाँ थी प्यारे
दिल के कहने पर चल निकला