हमें न रास ज़माने की महफ़िलें आई
चलो कि छोड़ के अब इस जहाँ को चलते हैं
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क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की
दिल के कहने पर चल निकला
बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी
अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बाँ थी प्यारे
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
शेर में साथ रवानी के मआनी भी तो भर
तुम सितारों के भरोसे पे न बैठे रहना
दिल न माना मना के देख लिया
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई