दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
इक न इक रोज़ तो वादे से मुकरना है उसे
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दे गया ख़ूब सज़ा मुझ को कोई कर के मुआफ़
कौन आएगा भूल कर रस्ता
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से
क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की
हमें न रास ज़माने की महफ़िलें आई
तुम सितारों के भरोसे पे न बैठे रहना
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
वक़्त के साथ 'सदा' बदले तअल्लुक़ कितने
उन्हें न तोलिये तहज़ीब के तराज़ू में
क्यूँ सदा पहने वो तेरा ही पसंदीदा लिबास