दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर
वक़्त से पहले तो आते नहीं आने वाले
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दिल न माना मना के देख लिया
मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया
उन्हें न तोलिये तहज़ीब के तराज़ू में
तुम सितारों के भरोसे पे न बैठे रहना
लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला
शेर में साथ रवानी के मआनी भी तो भर
लोग कहते हैं दिल लगाना जिसे
न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई
क्यूँ सदा पहने वो तेरा ही पसंदीदा लिबास