दे गया ख़ूब सज़ा मुझ को कोई कर के मुआफ़
सर झुका ऐसे कि ता-उम्र उठाया न गया
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वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से
दिखाएगी असर दिल की पुकार आहिस्ता आहिस्ता
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है
कौन आएगा भूल कर रस्ता
क्यूँ ये हसरत थी दिल लगाने की
मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं