अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
सब ने सीखे हैं अब आदाब ज़माने वाले
Rahat Indori
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Jaun Eliya
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Friends Poetry
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क्यूँ सदा पहने वो तेरा ही पसंदीदा लिबास
दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी
न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
लाख तक़दीर पे रोए कोई रोने वाला
तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई
मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया