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अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले - सदा अम्बालवी कविता - Darsaal

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले

सब ने सीखे हैं अब आदाब ज़माने वाले

दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर

वक़्त से पहले तो आते नहीं आने वाले

अश्क बन के मैं निगाहों में तिरी आऊँगा

ऐ मुझे अपनी निगाहों से गिराने वाले

वक़्त बदला तो उठाते हैं अब उँगली मुझ पर

कल तलक हक़ में मिरे हाथ उठाने वाले

वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता

दर्द कुछ होते हैं ता-उम्र रुलाने वाले

इक नज़र देख तू मजबूरियाँ भी तो मेरी

ऐ मिरी लग़्ज़िशों पर आँख टिकाने वाले

कौन कहता है बुरे काम का फल भी है बुरा

देख मसनद पे हैं मस्जिद को गिराने वाले

ये सियासत है कि लानत है सियासत पे 'सदा'

ख़ुद हैं मुजरिम बने क़ानून बनाने वाले

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In Hindi By Famous Poet Sada Ambalvi. is written by Sada Ambalvi. Complete Poem in Hindi by Sada Ambalvi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.