सदा अम्बालवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सदा अम्बालवी
नाम | सदा अम्बालवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Sada Ambalvi |
जन्म की तारीख | 1951 |
जन्म स्थान | Ambala |
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
वक़्त के साथ 'सदा' बदले तअल्लुक़ कितने
वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता
उन्हें न तोलिये तहज़ीब के तराज़ू में
तुम सितारों के भरोसे पे न बैठे रहना
शेर में साथ रवानी के मआनी भी तो भर
'सदा' के पास है दुनिया का तजरबा वाइज़
रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
मोहब्बत के मरीज़ों का मुदावा है ज़रा मुश्किल
लोग कहते हैं दिल लगाना जिसे
क्यूँ सदा पहने वो तेरा ही पसंदीदा लिबास
कौन आएगा भूल कर रस्ता
हमें न रास ज़माने की महफ़िलें आई
इक न इक रोज़ रिफ़ाक़त में बदल जाएगी
दिल को समझा लें अभी से तो मुनासिब होगा
दिल जलाओ या दिए आँखों के दरवाज़े पर
दे गया ख़ूब सज़ा मुझ को कोई कर के मुआफ़
चलो कि हम भी ज़माने के साथ चलते हैं
बड़ा घाटे का सौदा है 'सदा' ये साँस लेना भी
अपनी उर्दू तो मोहब्बत की ज़बाँ थी प्यारे
अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले
ज़ुल्फ़ लहरा के फ़ज़ा पहले मोअत्तर कर दे
यूँ तो इक उम्र साथ साथ हुई
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
तबीअत रफ़्ता रफ़्ता ख़ूगर-ए-ग़म होती जाती है
रस्म-ए-दुनिया तो किसी तौर निभाते जाओ
नींद आई ही नहीं हम को न पूछो कब से
न ज़िक्र गुल का कहीं है न माहताब का है
मंज़र-ए-रुख़्सत-ए-दिलदार भुलाया न गया