दो ही किरदार थे कहानी में
दोनों ही मर गए जवानी में
लोग लाशें निकाल पाए बस
इश्क़ डूबा हुआ था पानी में
ज़िंदगी जल चुकी थी लकड़ी सी
राख बस बच गई निशानी में
मोड़ आया था मैं मुड़ा ही नहीं
हो गई भूल ज़िंदगानी में
था 'सचिन' शख़्स इक मिरे जैसा
और वो मैं था बद-गुमानी में