ये कारोबार-ए-मोहब्बत है तुम न समझोगे
हुआ है मुझ को बहुत फ़ाएदा ख़सारे में
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चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम
सारे मंज़र हसीन लगते हैं
रखे रखे हो गए पुराने तमाम रिश्ते
मुझे क़रार भँवर में उसे किनारे में
हँस हँस के उस से बातें किए जा रहे हो तुम
तिरे तसव्वुर की धूप ओढ़े खड़ा हूँ छत पर
ये क्या बद-मज़ाक़ी है गर्द झाड़ते क्यूँ हो
सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी
मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की
यहाँ पे हँसना रवा है रोना है बे-हयाई
तुम्हारे आलम से मेरा आलम ज़रा अलग है