यहाँ पे हँसना रवा है रोना है बे-हयाई
सुक़ूत-ए-शहर-ए-जुनूँ का मातम ज़रा अलग है
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तिरे तसव्वुर की धूप ओढ़े खड़ा हूँ छत पर
मुस्तक़र की ख़्वाहिश में मुंतशिर से रहते हैं
हमारी बेचैनी उस की पलकें भिगो गई है
फ़स्ल बोई भी हम ने काटी भी
ये क्या बद-मज़ाक़ी है गर्द झाड़ते क्यूँ हो
सच यही है कि बहुत आज घिन आती है मुझे
आफ़रीं लुत्फ़-ए-कलाम-ए-यार पर
आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो
वो और होंगे नुफ़ूस बे-दिल जो कहकशाएँ शुमारते हैं
चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम
हम उस की ख़ातिर बचा न पाएँगे उम्र अपनी
सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी