तिरे तसव्वुर की धूप ओढ़े खड़ा हूँ छत पर
मिरे लिए सर्दियों का मौसम ज़रा अलग है
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चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम
आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो
सारे मंज़र हसीन लगते हैं
मुझे क़रार भँवर में उसे किनारे में
ये कारोबार-ए-मोहब्बत है तुम न समझोगे
सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी
रखे रखे हो गए पुराने तमाम रिश्ते
सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का
आफ़रीं लुत्फ़-ए-कलाम-ए-यार पर
वो और होंगे नुफ़ूस बे-दिल जो कहकशाएँ शुमारते हैं
मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की