रखे रखे हो गए पुराने तमाम रिश्ते
कहाँ किसी अजनबी से रिश्ता नया बनाएँ
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Allama Iqbal
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Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
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अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ
ये क्या बद-मज़ाक़ी है गर्द झाड़ते क्यूँ हो
आहिस्ता बोलिएगा तमाशा खड़ा न हो
आफ़रीं लुत्फ़-ए-कलाम-ए-यार पर
वा'दा था कब का बार-ए-ख़ुदा सोचने तो दे
ख़ूबियों को मस्ख़ कर के ऐब जैसा कर दिया
मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की
मुख़्तसर ही सही मयस्सर है
मुस्तक़र की ख़्वाहिश में मुंतशिर से रहते हैं
सैंत कर ईमान कुछ दिन और रखना है अभी
सारे मंज़र हसीन लगते हैं
तिरे तसव्वुर की धूप ओढ़े खड़ा हूँ छत पर