चिलचिलाती-धूप थी लेकिन था साया हम-क़दम
साएबाँ की छाँव ने मुझ को अकेला कर दिया
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हँस हँस के उस से बातें किए जा रहे हो तुम
आफ़रीं लुत्फ़-ए-कलाम-ए-यार पर
हम उस की ख़ातिर बचा न पाएँगे उम्र अपनी
सभी मुसाफ़िर चलें अगर एक रुख़ तो क्या है मज़ा सफ़र का
मुस्तक़र की ख़्वाहिश में मुंतशिर से रहते हैं
मुझ से कल महफ़िल में उस ने मुस्कुरा कर बात की
तुम्हारे आलम से मेरा आलम ज़रा अलग है
वो और होंगे नुफ़ूस बे-दिल जो कहकशाएँ शुमारते हैं
सच यही है कि बहुत आज घिन आती है मुझे
ये क्या बद-मज़ाक़ी है गर्द झाड़ते क्यूँ हो
वा'दा था कब का बार-ए-ख़ुदा सोचने तो दे
उस के शर से मैं सदा माँगता रहता हूँ पनाह