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अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ - साबिर कविता - Darsaal

अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ

अख़ीर-ए-शब सर्द राख चूल्हे की झाड़ लाएँ

तुम्हारी यादों के आइने फिर से जगमगाएँ

गली के नुक्कड़ पर अब नहीं है वो शोर फैला

भलाई इस में है ज़ाइक़े हम भी भूल जाएँ

रखे रखे हो गए पुराने तमाम रिश्ते

कहाँ किसी अजनबी से रिश्ता नया बनाएँ

वो हँसी आँखें जलाए देती हैं जाँ हमारी

नवाह-ए-जाँ में ग़ुबार-ए-आह-ओ-बुका उड़ाएँ

हमारी सब लग़्ज़िशें हैं महफ़ूज़ डाइरी में

तभी तो हैं मुद्दई कि कम कम मिली सज़ाएँ

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In Hindi By Famous Poet Sabir. is written by Sabir. Complete Poem in Hindi by Sabir. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.