उम्र भर लिखते रहे फिर भी वरक़ सादा रहा
जाने क्या लफ़्ज़ थे जो हम से न तहरीर हुए
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हर शख़्स बिछड़ चुका है मुझ से
सब सितम याद हैं सारी हमदर्दियाँ याद हैं
दिन को मिस्मार हुए रात को तामीर हुए
महसूस लम्स जिस का सर-ए-रह-गुज़र किया
वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है
नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
किसी ख़याल की सरशारी में जारी-ओ-सारी यारी में
वो नींद अधूरी थी क्या ख़्वाब ना-तमाम था क्या
वो एक बार भी मुझ से नज़र मिलाए अगर
यहाँ है धूप वहाँ साए हैं चले जाओ
सितारे सो गए तो आसमाँ कैसा लगेगा
मैं एक हाथ तिरी मौत से मिला आया