नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
भेज साहिल की तरफ़ अपनी ख़बर पानी से
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नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
शाम से पहले तिरी शाम न होने दूँगा
हर दर्जे पे इश्क़ कर के देखा
दूर तक एक ख़ला है सो ख़ला के अंदर
कैसे करें बंदगी 'ज़फ़र' वाँ
किसी तौर हो न पिन्हाँ तिरा रंग-ए-रू-सियाही
वो लोग आज ख़ुद इक दास्ताँ का हिस्सा हैं
किसी ज़िंदाँ में सोचना है अबस
गुज़ारता हूँ जो शब इश्क़-ए-बे-मआश के साथ
अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता
जीने का दरस सब से जुदा चाहिए मुझे
शिकायत उस से नहीं अपने-आप से है मुझे