नए कपड़े बदल और बाल बना तिरे चाहने वाले और भी हैं
कोई छोड़ गया ये शहर तो क्या तिरे चाहने वाले और भी हैं
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ये ज़ख़्म-ए-इश्क़ है कोशिश करो हरा ही रहे
कितनी बे-सूद जुदाई है कि दुख भी न मिला
वो क्यूँ न रूठता मैं ने भी तो ख़ता की थी
ये इब्तिदा थी कि मैं ने उसे पुकारा था
यहाँ जो पेड़ थे अपनी जड़ों को छोड़ चुके
गुज़ारता हूँ जो शब इश्क़-ए-बे-मआश के साथ
मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
सुब्ह की सैर की करता हूँ तमन्ना शब भर
मिसाल-ए-संग पड़ा कब तक इंतिज़ार करूँ
मुड़ के जो आ नहीं पाया होगा उस कूचे में जा के 'ज़फ़र'
अक्स पानी में अगर क़ैद किया जा सकता
अपनी यादें उस से वापस माँग कर