न इंतिज़ार करो इन का ऐ अज़ा-दारो
शहीद जाते हैं जन्नत को घर नहीं आते
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नज़र आते नहीं हैं बहर में हम
नज़र से दूर हैं दिल से जुदा न हम हैं न तुम
जिधर हो ज़िंदगी मुश्किल उधर नहीं आते
पड़ा न फ़र्क़ कोई पैरहन बदल के भी
मैं भी हूँ इक मकान की हद में
ये ज़ख़्म-ए-इश्क़ है कोशिश करो हरा ही रहे
ऐ काश ख़ुद सुकूत भी मुझ से हो हम-कलाम
तन्हाई तामीर करेगी घर से बेहतर इक ज़िंदान
वो नींद अधूरी थी क्या ख़्वाब ना-तमाम था क्या
बना हुआ है मिरा शहर क़त्ल-गाह कोई
नामा-बर कोई नहीं है तो किसी लहर के हाथ
सब सितम याद हैं सारी हमदर्दियाँ याद हैं